ए ज़िन्दगी जरा ये तो बता क्यो है तू मुझसे ख़फ़ा

ए ज़िन्दगी जरा ये तो बता क्यो है तू मुझसे ख़फ़ा

वीरान चमन में कहाँ कहाँ ढूंढू मैं वफ़ा

दफन हो जाऊं अपनी अधूरी ख्वाहिशों को लेकर

या इस दार ए फानी से मैं हो जाऊं दफा

ए ज़िन्दगी जरा ये तो बता क्यो है तू मुझसे खफ़ा ।।

अब तो बोझिल सा रहने लगा हूँ

जुल्म तन्हाई के रूह पर सहने लगा हूँ

सितम बढ़ता ही जा रहा है मुझपर गमो का

अब तो ना चाहते हुए भी मैं रोने लगा हूँ

दवा अब सब बेअसर है मिलती नही है कोई भी शिफा

ए ज़िन्दगी जरा ये तो बता क्यो है तू मुझसे से ख़फ़ा ।।

चाहते मेरी ,आरजुएं मेरी आज क्यो खाक होने को है

जो थे मेरे कभी वो आज गैर के होने को है

दिखती नहीं उनको मेरी मोहब्बत रूहानी

मेरा ज़िस्म मेरी जिंदगानी आज सब फ़ौत होने को है

पढ़ पढ़कर नमाज़े उसके इश्क़ की

मेरी रूह आज मौत का कर रही है दिफ़ा

ए ज़िन्दगी जरा ये तो बता क्यो है तू मुझसे ख़फ़ा ।।

️Imran Ilahi

 

#Imran Ilahi

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