वो लड़की

बंद मुठी रेत की जो यु हाथों से झरने लगती है

निराशा से वो लड़की आज यु मरने लगती है

कशुर ना था उसका दबोचा किसी ने जो था पीछे से

शर्मशार कर इनायत को खरोंचा जो सिने से

वो तरप रही झल्ला रही खींचा जो कोने में

वो लड़की आज खुद साये में भी डरने यू लगती है

बंद मुठी रेत की जो यु हाथों से झरने लगती है

निराशा से वो लड़की आज यु मरने लगती है

क्या कहता है फिर जमाना की गलती भी उसकी थी

जो सांझ को बन ठन के लड़की घर से निकली थी

नियत बिगड़ने में फिर कोई देर नहीं लगती

जो लड़की खुद को समझती घर से ना चलती है

बंद मुठी रेत की जो यु हाथों से झरने लगती है

निराशा से वो लड़की आज यु मरने लगती ह

क्या होगा मेरे देश का में सोच रही हु

अपने ही लोगों में डरके खो रही हु

कशुर अगर था उसका तो कल मेरा भी तो होगा ही

निराशा यु फिर जहन से देह में SuDhi उतरने लगती है

बंद मुठी रेत की जो यु हाथों से झरने लगती है

निराशा से वो लड़की आज यु मरने लगती ह

SuDhi

#SuDhi

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